गढ़ तो बस चित्तौढग़ढ़ बाकी सब गढ़ैया: चित्तौड़गढ़ दुर्ग घूमने की जानकारी

“गढ़ तो बस चित्तौढग़ढ़ बाकी सब गढ़ैया” ये कहते हुए हमारी होस्ट और गाइड पार्वती के चेहरे पर ख़ुशी और मान दोनों झलक रहे थे।

इसके साथ ही शुरू हुई हमारी 7वीं शताब्दी में बने राजस्थान के चित्तौढग़ढ़ किले से मुलाकात।

हिंदी में इस कहावत का मतलब है, “अगर बात करने लायक कोई किला है तो बस चित्तौड़गढ़ है, बाकी सब तो छोटे-मोटे किले हैं!” चित्तौड़गढ़ में स्थित है भारत और एशिया का सबसे बड़ा किला- चित्तौड़ का किला। ऐसा और क्या ख़ास है इस किले में कि ये आपकी ‘बकेट लिस्ट’ का हिस्सा बने? तो चलिए मैं आपको इसके 12 कारण बताती हूँ।

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास

मेवाड़ का इतिहास और उस पर सिसोदिया राजवंश का राज इतना पुराना है कि इसकी जड़ें 566 ईस्वी तक मिलती हैं। सिसोदिया राजवंश की शुरुआत करने वाले बप्पा रावल (734-753 ई) ने मौर्य वंश से चित्तौड़ को जीत लिया था।

सदियों के इतिहास में, राजपूत दो बार अपने किले को हार कर वापस पाने में कामयाब रहे- अलाउद्दीन खिलजी से और मालवा के बहादुर शाह से। लेकिन तीसरी बार की लड़ाई में अकबर की जीत हुई और ये किला आख़िर मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया।

राजपूतों के लिए मौत अपमान से बेहतर थी। चित्तौड़गढ़ किला राणा कुंभा, राणा सांघा, महाराणा प्रताप जैसे बहादुर राजाओं और रानी पद्मिनी ( जिन्हें रानी पद्मावती भी कहा जाता है) और पन्ना धाई जैसी बहादुर महिलाओं के बलिदान का जीता-जागता सबूत है।

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चित्तौड़गढ़ की कहानियाँ

बहुत सी ऐसी कही-सुनी कहानियाँ हैं, जिन में ऐसा कहा जाता है कि शक्तिशाली भीम (पाँच पांडव राजकुमारों में से एक) ने यहाँ की ज़मीन पर अपना पैर मार कर उससे पानी का बहाव निकाल दिया जिसके कारण यहाँ एक तालाब बना जिसे भीमलात नाम से जाना जाता है।

चित्तौड़गढ़ किले में देखने और करने के लिए क्या है?

मछली के आकार जैसा दिखने वाला चित्तौड़गढ़ किला एक 180 मीटर ऊंची पथरीली पहाड़ी पर बना है और ये गम्भीरी नदी के पास तक 700 एकड़ में फैला हुआ है।

जैसलमेर के किले की तरह, चित्तौड़गढ़ किला भी एक ऐसा किला है, जिस के अंदर कई गाँव बसे हुए हैं। चित्तौड़गढ़ घूमने के लिए कम से कम एक दिन का समय तो लगेगा। किले को बेहतर जानने के लिए और अच्छे से घूमने के लिए एक गाइड लेना बढ़िया रहेगा।

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मैं आपको चित्तौड़गढ़ में ये 10 स्थान घूमने की सलाह दूँगी।

1. चित्तौड़गढ़ किले के सात द्वार (पोल)

किले की ओर बढ़ता रास्ता सात दरवाज़ों में से होकर गुजरता है जिन्हें सिसोदिया वंश के मेवाड़ के राजा राणा कुंभा (1433- 1468) ने बनवाया था।

इन दरवाज़ों को यहाँ की आम भाषा में ‘पोल’ कहते हैं। इनके नाम हैं- पैदल पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोरला पोल, लक्ष्मण पोल, और आखिर में राम पोल। 

किले के दूसरी तरफ एक दरवाज़ा है जो सूरज की दिशा में खुलता है। यह चित्तौड़गढ़ किले का पूर्वी द्वार है और इसलिए इसका नाम ‘सूरज पोल’ रखा गया।

2. चित्तौड़गढ़ – एक ‘पानी वाला किला’

किसी समय में इस किले में 84 जलाशय थे पर अब इनमें से केवल 22 ही बचे हैं। इनमें कुएं, तालाब, और बावड़ी शामिल हैं।

सभी तालाबों में प्राकृतिक तरीके से पानी इकट्ठा होता है। कुएं और बावड़ी तालाबों के नीचे बने हुए हैं ताकि बाद में रिसने वाला पानी भी बर्बाद न हो।

3. रानी पद्मिनी का महल

यहाँ सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले स्थानों में से एक है राजपूत रानी पद्मावती उर्फ ​​पद्मिनी का महल। उनका विवाह मेवाड़ के राजा रतन सिंह से हुआ था। राजपूत इतिहास में ये महल बहुत ख़ास भूमिका निभाता है।

कमलों के तालाब के किनारे पर बने इस महल में एक मंडप था जो शाही परिवार की महिलाओं के इस्तेमाल के लिए था।

उस समय के दिल्ली के सुल्तान अला-उद-दीन खिलजी ने एक बार रानी पद्मिनी की परछाईं को तालाब के पानी में देखा। वह उसकी सुंदरता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने रानी का अपहरण करने के लिए अपनी सेना के साथ चित्तौढ़ पर चढ़ाई करने की ठान ली। 

ऐसा माना जाता है कि अपने पति की हार की खबर सुनकर रानी पद्मिनी ने राणा कुंभा महल के नीचे बने तहखाने में जौहर (आत्मदाह- खुद को आग के हवाले करना) कर लिया।

4. क्या राणा कुंभा महल में प्रेत- आत्माओं का वास है?

अब खंडहर हो चुका राणा कुंभा महल चित्तौड़ के किले के सबसे बड़े स्मारकों में से एक है।

ऐसा माना जाता है कि बप्पा रावल ने 734 ईस्वी में इस महल को बनवाया था। महाराणा कुंभा ने अपने राज में इसे नए सिरे से तैयार करवाया और उसके बाद से इस महल का नाम उनके नाम पर रखा गया।

माना जाता है कि महल में ज़मीन के नीचे वो तहखाने हैं जहाँ रानी पद्मिनी के साथ कई और महिलाओं ने ‘जौहर’ (आत्मदाह) किया था। किसी समय में ये महल बहुत प्रसिद्ध था। इसके खंडहरों में भगवान शिव का मंदिर, ज़नाना महल, दीवान-ए-आम, और घोड़ों के लिए एक तबेला है।

हालांकि हमने यहाँ घूमते हुए किसी भी तरह की कोई अजीब हरकत नहीं देखी, लेकिन यह माना जाता है कि इस महल में आत्माओं का वास है।

5. पन्ना धाई और मीरा बाई का निवास स्थान।

कहा जाता है कि उदयपुर शहर की स्थापना करने वाले, महाराणा उदय सिंह का जन्म यहीं हुआ था, और बचपन में उनकी धाई ‘पन्ना धाई’ ने उनकी जान बचाई थी।

पन्ना धाई ने मेवाड़ के होने वाले राजा को बचाने के लिए अपने ही बेटे का बलिदान दे दिया।  लोग आज भी अपनी मातृभूमि के लिए अपने ही बेटे की कुर्बानी देने वाली पन्ना धाई को याद करते हैं। किसी समय इस महल में प्रसिद्ध भक्ति कवयित्री मीराबाई भी रहीं थीं।

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6. कीर्ति स्तम्भ

12 वीं शताब्दी में बना ये कीर्ति स्तम्भ 22 मीटर ऊंचा है। जैन समुदाय के लोगों ने इसे भगवान श्री आदिनाथ ऋषभदेव (प्रथम जैन तीर्थंकर) को समर्पित किया है।

7. विजय स्तम्भ

सन 1440 में राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी की अगुआई वाली मालवा और गुजरात की सेना को हरा दिया। अपनी इस जीत की यादगार के रूप में राणा कुम्भा ने ‘विजय स्तम्भ’ बनवाया।

यह 9 मंजिला स्तंभ लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनाया गया है। इस पर हिंदू देवी-देवताओं की सुन्दर मूर्तियाँ बनी हुई हैं।

8. जयमल और पट्टा का महल

ये महल अब खंडहर बन चुका है पर अब भी ये जयमल राठौर और पट्टा सिसोदिया की वीरता की याद दिलाता है, जिन्होंने चित्तौड़गढ़ का सम्मान बनाए रखने के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। 

9. रतन सिंह का महल

शाही परिवार का शीतकालीन (सर्दियों में इस्तेमाल होने वाला) महल, रतन सिंह पैलेस, रत्नेश्वर तालाब (झील) के पास बना हुआ है। इसके मुख्य द्वार के उत्तर में एक मंदिर है, जिसे रत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

महल के बाहरी हिस्से को फिर से बना कर ठीक किया गया है लेकिन अंदर से महल ज़्यादातर अब खंडहर हो चुका है।

10. कुंभश्याम का मंदिर / मीरा मंदिर

 कुंभश्याम मंदिर महाराणा कुंभा ने बनवाया था जो भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है।

इस मंदिर में एक और मंदिर है जो कवयित्री राजकुमारी मीरा को समर्पित है जो भगवान कृष्ण की भक्त थीं। उनके भक्ति-गीत आज भी गाए जाते हैं।

11. चित्तौड़गढ़ किले के अंदर के मंदिर

किले के अंदर छह जैन मंदिर हैं। इनमें से, 52 देवतुलिकाओँ वाले भगवान आदिनाथ जी का मंदिर ख़ास ज़िक्र करने लायक है।

6ठी शताब्दी में बनाये गए समिधेश्वर महादेव में खूबसूरत नक्काशी की गई है और यहाँ शिव की त्रिमूर्ति (तीन मुख वाली) आकृति विराजमान है। चारभुजा, लक्ष्मी नारायण मंदिर, और सास बहू मंदिरों के उत्तर की ओर अन्नपूर्णा माता और बाण माता को समर्पित दो सुंदर मंदिर हैं

12. फतेह प्रकाश महल

फतेह प्रकाश महल, किले के मुख्य इलाके के अंदर, तोपखाना और कुंभ पैलेस के पास स्थित है।

सफेद रंग के इस दो-मंजिला महल को महाराणा फतेह सिंह (1884-1930) ने बनवाया था। इसके चारों कोनों पर सुंदर गुंबदों से सजी मीनारें हैं। 1968 में, “फतेह प्रकाश पैलेस” के एक बड़े हिस्से को “फतेह प्रकाश पैलेस म्युज़ियम” में बदल दिया गया। इस सरकारी म्युज़ियम में मूर्तियों का बहुत बढ़िया कलेक्शन है जो आपको कहीं और शायद ही देखने को मिले।

हमारी यात्रा के दौरान इसमें मरम्मत का काम चल रहा था इसलिए हम इसे देखने नहीं गए।

फिल्म “पद्मावती” विवाद का कारण

बॉलीवुड निर्देशक संजय लीला भंसाली की “पद्मावती” एक हिस्ट्री पीरियड ड्रामा फिल्म है, जो मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत (1540) पर आधारित है। कवि की ये रचना असलियत पर आधारित थी या बस उसकी कल्पना, ये अभी भी विवाद का कारण है।

इसलिए कई मंत्रियों, धार्मिक संगठनों और महिलाओं के समूहों ने फिल्म के प्रति अपना गुस्सा ज़ाहिर किया।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इस बहस में किस तरफ हैं, राजस्थान का चितौड़गढ़ किला बहादुर राजाओं, शानदार रानियों, वीर योद्धाओं और मंत्रमुग्ध करने वाली इमारतों की कहानी बयान करता है।

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चित्तौड़गढ़ किले तक कैसे पहुँचें

  • यहाँ सबसे नज़दीक हवाई अड्डा उदयपुर शहर में डबोक हवाई अड्डा है, जो लगभग 105 किमी दूर है।
  • राजस्थान के सभी बड़े शहरों से चित्तौड़गढ़ के लिए नियमित बसें चलती हैं। उदयपुर सबसे नज़दीकी प्रमुख शहर है।
  • चित्तौड़गढ़ उदयपुर, अजमेर, जयपुर और दिल्ली से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है।
  • चित्तौड़गढ़ दिल्ली से लगभग 580 किमी दूर है और दिल्ली से यहाँ एक बढ़िया वीकेंड ट्रिप के लिए जा सकते हैं। चित्तौड़गढ़ पहुँचने में हमें (बीच में रुकते हुए) 12 घंटे का समय लगा।
  • बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन, दोनों न्यू टाउनशिप में स्थित हैं।

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