हिमालय की पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ, उत्तराखंड के पिथोरागड जिल्हे में मुनस्यारी एक खूबसूरत पर्वतिय स्थल है. यहाँ के ओक वृक्षों के सघन जंगल मे मुंसियारी का ‘मेसर कुंड’ एक दिन के फेमिली ट्रेक के लिए एक परफेक्ट जगह है. एक बार आप इस गांव में पहुंच गये तो यहाँ का प्रसन्न, स्वच्छ वातावरण और ‘पंचचुली’ का अप्रतिम दृश्य देखकर आप मोहित हो जायेंगे. निसर्ग पर्यटन का भरपूर आनंद लुटने के लिए इससे बेहतर दुसरा स्थान आपको नहीं मिलेगा.

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मुनस्यारी के आसपास छोटे ट्रेक या पिकनिक के लिए कई जगह हैं. मुनस्यारी के जंगल में पहाड़ के ढलान पर एक छोटा सा गांव है,’सिरमोली. सिरमोली में हमने दस दिन होम-स्टे किया था. एक स्थानीय परिवार में रहते थे, उन्हीं के साथ नाश्ता और भोजन भी होता था.

सच बताएँ तो यहाँ हमारा पूरा समय यहाँ के लोगों से गपियाने में, रंगबिरंगी तितलीयोंके पिछे भागने में और वहां का म्युझियम देखने में कैसे व्यतीत हुआ पता ही नही चला. यदि आप को यह सब कुछ नही भी करना है तो कहीं भी खुली छत के नीचे हरियाली पर लेट कर अपनी मनपसंद पुस्तक का आनंद ले सकते हैं या इस निशब्द ,शांत वातावरण में लेखन कार्य भी कर सकते हैं.

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मेसर कुंड ट्रेक
एक दिन हमने अपने 9 और 11 वर्ष के बच्चों के साथ मेसर कुंड के एक छोटे से ट्रेक पर जाने का फैसला किया. यहां की बोली भाषा में मेसर कुंड को मिसार कुंड या माहेश्वरी कुंड भी कहा जाता है. ओक और रोडोडेंड्रॉन /बुरांस ( एक झुमके जैसे बडे बडे फूलोंसे लदा हुआ सदा हरित वृक्ष) के वृक्षों के बीच से एक पथरीली पगदंडी आपको सीधे मेसर कुंड पहुँचा देती है.
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जो फिट हैं उन लोगों के लिए यह एक सीधा सरल ट्रेक है, औरों के लिए थोडा कष्टप्रद हो सकता है. आरंभ में बच्चों ने भी थोड़ी ना खुशी से ही चलना शुरू किया था परंतु थोड़े ही समय के बाद वहाँ की हरियाली और जैव विविधता के कारण ,कुदते फांदते उन्होंने अच्छी स्पीड पकड़ी और कब उपर पहुँच गए पता ही नही चला. समय देखने पर पता चला सिरमोली से मात्र एक घंटे में यहाँ पहुँच गये थे.

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दर्शनीय प्रकृति
मेसर कुंड के पहले ही आपको एक छोटा सा कुंड नज़र आता है.यहाँ कुछ देर रुककर ,ठंडे पानी में खेलकर,थोड़ा विश्राम करने के पश्चात भी आगे बढ़ सकते हैं.यहाँ से मेसर कुंड कुछ पांच से दस मिनट की दूरी पर स्थित है.यह प्रवास आपको एक पठार पर पहुँचता है.

हम न जाने कितनी देर उस हरित गलिचे पर लेट कर आसमान को निहारते हुए निशब्द पडे रहें. पल पल बदलते हुए बादलों के दृश्य, हमारे ऊपर से निसंकोच उड़ने वाली रंगबिरंगी तितलीयाँ और दूर कहीं से सुनाई देनेवाली पक्षियों की चहचहाट. निसर्ग का यह रुप मंत्र मुग्ध करनेवाला था.
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बच्चों के साथ हम बडे भी मेंढक और उनके छोटे छोटे बच्चों के पिछे भाग रहें थे.इसी बीच कभी तितली पकडने की कोशिश करते तो कभी अलग अलग पक्षियों के नाम ढुंढने की कोशिश करते.पक्षियों की विविध प्रजातियों यहाँ देखने को मिलती हैं.किसी की चोंच लाल है तो किसी की पिली.किसी के पैर नारंगी है तो किसी की गर्दन नारंगी है और पिठ भुरे रंग की. सबके नाम याद करना और याद रखना बहुत कठिन काम था.

यहाँ आते समय नाश्ता या भोजन ,पीने का पानी और चलते फिरते मुँह में डालने के लिये कुछ हल्की फुल्की चीजें साथ में रखना अति आवश्यक है. क्योंकि भगवान का शुक्र है कि अभी यहाँ का निसर्ग किसी भी अतिक्रमण से मुक्त है.

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जोंक से सावध रहिए
यदि आप यह ट्रेक बरसात के दिनोमें करना चाहते हैं तो लीच से सावधान रहिए. अपने पँटस् को मोजे के अंदर करना जरूरी है नही तो आप इच्छा न होते हुए भी रक्त दाता बन सकते हैं. सभी सावधानी बरतने के बावजूद जोंक पैरोंमे चिपक जाती है तो घबराये नही. उसपर थोडा नमक छिडक दीजिए.आप निःसंदेह मुक्त हो जाएंगे.

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कुंड महोत्सव
प्रति वर्ष मई महिने में बुध्द पौर्णिमा को इस कुंड के समिप उत्सव का आयोजन किया जाता है. जिसे ‘मेसर वन प्रदर्शन’ या यहाँ की बोली भाषा में ‘मेसर वन कौटिक’ कहा जाता है. इसी समय यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा ‘ हिमल कलासूत्र’ (Himal Kalasutra) महोत्सव मनाया जाता है जिसके द्वारा उनके सांस्कृतिक विरासत का संवर्धन भी होता है.

यक्ष और सुंदरी

जिन्हें धार्मिक या पौराणिक कथाओं में विश्वास है उनके लिये इस कुंड के बारे में दंत कथा के बार में बताना लाजमी होगा. यक्ष याने कुछ बौने, मोटा पेट, बडासा चेहरा वाले वनचर जो मानव जाति से थोडी दूरी बनाकर रहनेवाले पानीके देवता कहलाते थे. वे संपत्ति का रक्षण भी करते थे. ऐसी एक मान्यता है कि जहाँ पानी होगा वहां धन-धान्य,संपत्ति भी होगी और उसके रक्षणार्थ वहाँ यक्ष भी होंगे.
ये यक्ष याने वाइकिंग कथाके बौने, या आइरिश कथाओं में पाये जाने वाले भूत-पिशाच या हम सब के बहुत परिचय के झेन बुध्द धर्म के लाफिंग बुध्दा जैसे दिखनेवाले.
गांवके लोग किसी तालाब या नदी के तटपर ,एक वृक्ष के निचे उनकी स्थापना कर, धन-संपत्ति की प्राप्ति के लिए उनकी आराधना करते थे.
इस कुंड के बारे में दो आख्याइका प्रमुखता से प्रचलित हैं. दोनो ही कथाओं में यक्ष और सुंदरी है.
कथा-1
ऐसा कहा जाता है कि एक यक्ष इस मेसर कुंड के पास रहता था. वहाँ के पानी और संपत्ति का रक्षण करता था. कुछ दिनों के बाद उसे गांव के मुखिया की बेटी से प्यार हो गया. सभी ग्रामवासियों ने इसका विरोध किया और यक्ष को सजा दिलाने के लिए पूरे तालाब को खाली कर दिया. उनके इस कृत्य से नाराज यक्षने उन्हें शाप दिया कि गांव में हर वर्ष दुर्भिक्ष की स्थिति बनी रहेगी.
तब ग्रामवासियों ने हर तरह से यक्ष को मनाया और उसकी माफी मांगकर विनंति की. तभी से यह कुंड हमेशा ही पानी से भरा रहता है और संपूर्ण गांव को भरपूर पानी देता है.

कथा 2 – एक तरफा नाकामयाब प्यार
सिरमोली गाव में प्रचलित दुसरी कथा में एक यक्ष इस तालाब के किनारे रहता था और उसीके आशीर्वाद से ग्रामवासी अपने परिवार के साथ मजेसे रहते थे. कुछ समय पश्चात उसकी नजर इस गांव की सबसे सुंदर लड़की पर पड़ी.वह उसे सम्मोहित कर तालाब के बीच खिले एक कमल के पास ले आया और उसे कमल के ऊपर खड़ा किया. कमल धीरे धीरे पानी के अंदर धसता चला गया. उसकी सखी ने यह बात ग्रामवासियों को बताई.

नाराज ग्रामवासियों ने यक्ष से उस सुंदर लडकी को वापस देने के लिए कहा. परंतु यक्ष ने कपट कर दुसरी लडकी को भेजा .लडकी के माता पिता ने उस लडकी को अपनाने से मना कर दिया. तब गुस्से में पागल यक्षने लडकी का मृत देह तालाब के किनारे फेंक दिया. ग्रामवासियों ने भी आव देखा न ताव,पूरे तलाव का पानी खाली कर दिया.
तब जाकर यक्ष को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसने माता-पिता की गोद में एक सुंदर सी कन्या को डाल दिया. परंतु गाववालों को शाप दिया कि इस गांव में जब भी कोई नया बच्चा जन्म लेगा तो एक घर में मौत भी होगी. अब गाँव के लोग तन मन से यक्ष की पूजा करते हैं.

किसी का इन पौराणिक कथाओं में विश्वास हो या न हो सारांश यह है कि नैसर्गिक पर्यावरण पूरक चीजों का जतन एवं संवर्धन करना चाहिए.
मेसर कुंड का पुर्नजन्म :-
कुछ वर्षों पूर्व मेसर कुंड नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुका था. जलकुम्भी, काई और पानी मेें बढनेवाली अन्य वनस्पति के कारण पानी के स्रोत ने अपना रुख ही मोड लिया था. कुंड में पानी की सतह कम होते जा रही थी और जंगली वनस्पति बेशुमार बढ रही थी.
2003 से 2009 श्रीमती मलिका विरदी सरमोली की सरपंच थी. पर्यावरण के प्रति जागरूक थी. अत: सरमोली वन पंचायत की मदत से उन्होंने मेसर कुंडको पुनर्जीवित किया. आसपास के गांव के स्वयंसेवक,वन विभाग के एवं अन्यपर्यावरण प्रेमी संस्थांओंकी मदतसे मेसर कुंडको उसका नैसर्गिक रुप प्राप्त हुआ.

उन्होंने कुंड के बाजू में एक खुला मंच बनाया है.जहाँ यहाँ के स्थानीय लोग अपनी सांस्कृतिक कला का प्रदर्शन करते हैं.
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(गैर)जिम्मेदार पर्यटक
जैवविविधता सेे समृद्ध इस वन में निसर्ग पर्यटन का आनंद उठाते हुए जब आप घुमते हैं तब पैरों में आने वाले बिस्किट और वेफर्स के रेपर्स,प्लास्टिक की बोतलें , बीअर के फेंकेे हुए केन आपके दिल में भी चुभते हैं.”
बच्चे इस तरह के व्यवहार को देखकर परेशान हो गये .
किसी जंगल में घूमने के बाद या पर्वतारोहण से लौटते हुए आप ने देखा उससे अधिक साफ कर के ही वापस लौटना चाहिए” इस मंत्र को ध्यान में रखते हुए बच्चों ने जितना हो सकता था,कचरा जमा किया और साथ में लेकर वापसी का प्रवास शुरू किया.
स्मरण नोंद:-
अगली बार जब भी ट्रेक पर निकले तो रबरके हेंड ग्लाज़ रखना न भूले जिससे बच्चों के साथ कोई दुर्घटना ना हो.

आप कभी ऐसे एक दिन के छोटे ट्रेक पर या पिकनिक पर गये हैं? Comments section में हमें आपके अनुभव पढने में आनंद मिलेगा.

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संपुर्ण वर्णन और फोटो इतने सुन्दर है कि पहली छुट्टी में मुनस्यारी जाने का दिल कर रहा है
आपको जरूर जाना चाहिए. आप जगह पसंद करेंगे 🙂