‘वाह’ का अर्थ है नदी और ‘खेन’ का अर्थ है बहना ।
मॉरिंगखेंग ट्रेक (Mawryngkhang Trek) का मतलब है झाड़ू की सींखों के खेतों पर बने बम्बू के पुलों और पथरीली चट्टानों का सफर ।
सुनने में मजेदार लग रहा है ना? तो चलिए आपको इसके बारे में और बताते हैं ।
मॉरिंगखेंग ट्रैक (Mawryngkhang Trek) ट्रैक को पूरा करने में लगने वाला समय
आपकी शारीरिक तंदुरुस्ती और रास्ते में लिए गए ब्रेक्स पर निर्भर करते हुए लगभग 2 से 3 घंटे ।
मॉरिंगखेंग ट्रैक (Mawryngkhang Trek) शिलांग से दूरी
वाह खेन गांव मेघालय के पूर्व खासी पहाड़ी जिले की पायनूरस्ला तहसील में है। यह शिलांग से 42 किलोमीटर की दूरी पर है।
अगर आप अभी बिजी हैं तोह दाहिने हाथ के चित्र को पिनटेरेस्ट (Pinterest) पर पिन कर दें और आराम से बाद में इस पोस्ट को पढ़ें ।

मॉरिंगखेंग Mawryngkhang कहां है?
यू मॉरिंगखेंग (U Mawryngkhang) पत्थर वाह खेन (Wahkhen) गांव में है और इस ट्रैक को यू मॉरिंगखेंग ट्रेक या पूर्वी खासी पहाड़ियों का बंबू ब्रिज ट्रेक ( U Mawryngkhang trek / Bamboo Bridge trek of East Khasi Hills) भी कहा जाता है।
पर मुझे पसंद है इसे विश्वास का सफर कहना। क्यों, यह आपको आगे बढ़ने को मिलेगा।
मॉरिंगखेंग ट्रेक (Mawryngkhang Trek) के लिए वाह खेन कैसे पहुंचे

पब्लिक ट्रांसपोर्ट- पोमलं गांव से वाह खेन की दूरी 15 किलोमीटर है। शिलांग (बड़ा बाजार) से पोमलं गांव के लिए शेयर्ड कैब्स या पब्लिक बस ली जा सकती है जिसमें तकरीबन ₹90 खर्च होंगे।
यदि आप कैब से जा रहे हैं और ड्राइवर को वाह खेन समझ ना आए तो आप उस से कहिए कि आपको पूर्वी खासी पहाड़ियों के बंबू ब्रिज पर जाना है।

यहां से आगे का रास्ता उतना अच्छा नहीं है पर ज्यादा असुविधाजनक भी नहीं है। बेहतर होगा कि आप यहां के लिए अलग से एक निजी वाहन किराए पर ले लें।
क्या आप अगली छुट्टियों में मेघालय जाने का प्लान बना रहे हैं?

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This post was originally published in English and can be read here.
मॉरिंगखेंग ट्रेक क्या है? What is Mawryngkhang Trek?
‘यू मॉरिंगखेंग’ (U Mawryngkhang is a legendary stone)एक विशालकाय पत्थर है जिसकी कई कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती आई हैं।
‘यू’ शब्द आदर भाव को दर्शाता है, जैसे कि हिंदी भाषा में ‘श्री’ और अंग्रेजी में ‘मिस्टर’। ‘मॉरिंगखेंग’ का अर्थ है ‘पत्थरों का राजा’।

इसकी कहानी कुछ यूँ है कि यू मॉरिंगखेंग ने बाकी सभी पत्थरों पर विजय प्राप्त करके पत्थरों के राजा का ताज हासिल किया। पर रानी के बिना कैसा राजा? तो जैसे विधि का विधान था यू मॉरिंगखेंग को एक दूसरे राज्य के बहुत ही खूबसूरत पत्थर से प्यार हो गया।
इस पत्थर का नाम था ‘कुमारी कथियंग’ यानि ‘पतली, लंबी और खूबसूरत कन्या’।
पर ख़लनायक के बिना तो हर प्रेम कहानी अधूरी है।
‘यू मॉपटोर’ नाम के एक और बड़े पत्थर को भी कथियंग से प्यार हो गया। अब यू मॉरिंगखेंग और यू मॉपटोर के बीच द्वंद के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। और इस लड़ाई के दौरान यू मॉपटोर ने यू मॉरिंगखेंग की बाईं भुजा तोड़ दी।

लेकिन पत्थरों का राजा कहां हार मानने वाला था? उसने यू मॉपटोर पर इतनी ज़ोर से पलट वार किया कि उसका सर टूट कर नीचे खाई में गिर गया। यू मॉरिंगखेंग के प्यार की जीत हुई और कथियंग उसकी हुई।
यू मॉरिंगखेंग के शिखर से खाई में पड़ा यू मॉपटोर का सर दिखाई देता है।
मॉरिंगखेंग ट्रेक को क्यों चुनें?
क्योंकि ये सच में आपके होश उड़ाने के लिए काफी है!
झाड़ू की सींखों के खेतों के ऊपर बंबू ब्रिज से शुरू होता हुआ वाह खेन ट्रैक आपको साफ नीले पानी के प्राकृतिक स्त्रोंतों की ओर ले जाता है। यहां आप खुद को एक बहुत बड़े पत्थर के किनारे एक ब्रिज पर पाते हैं जिसके नीचे बहुत गहरी खाई है।

वाह खेन के तकरीबन 98% लोग नियम तिनरई का पालन करते हैं।
यहां के लोग संतरे और झाड़ू की सीखो की खेती पर निर्भर है। पारंपरिक खासी झोपड़ी के एक कमरे के स्कूल में अपने स्थानीय आदिवासी संगीत की शिक्षा प्रदान करके यह गांव अपनी संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रहा है।

इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और स्थानीय लोगों के लिए जीवन यापन के साधन मुहैया करवाने के लिए टूरिज्म ट्रैकिंग टीम ने 2017 में बम्बू ब्रिज का विकास किया और उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस क्षेत्र को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
यह मजबूत और पर्यावरण अनुकूल बंबू ब्रिज अधिकतर बंबू और बांस की रस्सियों के उपयोग से बनाए गए हैं।

केवल कुछ जगहों पर ही मज़बूती के लिए कीलों का इस्तेमाल किया गया है।
यह अपने आप में एक चमत्कार है कि कैसे स्थानीय इंजीनियरों ने इतनी गहरी खाइयों में कला का एक अनूठा नमूना पेश करते हुए बंबू के पुलों का निर्माण करने में दक्षता हासिल की है।
इस ब्रिज को केवल साथ सटे हुए सपाट पत्थर का ही सहारा है जिसके किनारे यह खड़ा है। इसीलिए मैंने इस ट्रैक को ‘ट्रेकऑफ फेथ’ या ‘विश्वास की चढ़ाई’ का नाम दिया है।

इस ट्रक में इस बंबू ब्रिज पर आप चलते हैं सिर्फ वाह खेन के लोगों और वहां के स्थानीय इंजीनियरों पर अपने विश्वास के सहारे।
ट्रैक को पूरा करने में लगने वाला समय
आपके शारीरिक तंदुरुस्ती और आप रास्ते में कितने ब्रेक लेते हैं इस पर निर्भर करते हुए इस ट्रैक को शुरुआत से लेकर वापस आने तक पूरा करने में 2 से 3 घंटे का समय लग सकता है।
हमने यह ट्रैक दोपहर में 1:50 बजे शुरू किया था और हम शाम के 6:00 बजे तक शुरू करने की जगह पर वापस पहुंच गए थे। इस ट्रैक के दौरान हम बीच में कई बार तस्वीरें लेने के लिए और ठंडे पानी के तालाबों में डुबकी लगाने के लिए भी रुके।

हमारे इस फैमिली ट्रेक में सबसे छोटा बच्चा 10 साल का था और सबसे बड़ा 13 साल की उम्र का। यह बात ज़िक्र करने योग्य है कि हर जगह पर बच्चे हम सभी से आगे थे और हम बड़े थके-हाँफे हुए उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।
हमें बताया गया था कि यहां के स्थानीय लोग इस ट्रैक को बड़े आराम से 40 मिनट में ही पूरा कर लेते हैं।
तस्वीरों से मॉरिंगखेंग ट्रेक की एक झलक

मॉरिंगखेंग ट्रेक झाड़ू की सीखों के खेतों के ऊपर बने एक बहुत ही संकरे बंबू ब्रिज से शुरू होता है।
हम यहां पर मई के अंत में आए थे जब मेघालय में वर्षा ऋतु का आगमन होता है।
हमारे ट्रैक शुरू करते ही हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गई थी। ऐसे में भीगने से बचने के लिए हल्के पोंचो बहुत काम आए जो हमने साथ ले लिए थे।

हल्की बूंदाबांदी, मंद पवन और एक खूबसूरत दृश्य के साथ यह ट्रैक एक अलौकिक अनुभव की तरह शुरू हुआ।

जहां बंबू ब्रिज खत्म हुआ वहां कच्चे सीढ़ी नुमा रास्ते की शुरुआत हुई। इनकी सीढ़ियों को बंबू की छड़ियों से आकर दे कर बनाया गया था।
यह कच्चा रास्ता वाह रियो नदी की तरफ जाता है जोकि खासी जयंतिया पहाड़ियों की सबसे साफ नदियों में से एक है। वाह रियो नदी बांग्लादेश की तरफ बहती है।
रास्ते में 3 पुल आपको नदी के दूसरी तरफ ले जाते हैं। हमने देखा कि नदी में उस वक्त ज्यादा पानी नहीं था।

जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए रास्ता कुछ कठिन होता गया। कहीं- कहीं सहारे के लिए किनारे पर बंबू की रेलिंग बनाई गई थी और कई जगह ऐसी कोई सुविधा नहीं थी।

सारे रास्ते में ऐसे ही बंबू ब्रिज और कच्चे रास्ते हैं। नदी पार करते ही चढ़ाई वाला रास्ता शुरू हुआ। बारिश की वजह से रास्ते के पत्थरों पर फिसलन हो सकते हैं इसलिए ध्यान से चलना ज़रूरी हो जाता है।

जल्दी ही हम लोग पहाड़ की किनारे किनारे चल रहे थे। बंबू की लकड़ियों का सहारा लेता बंबू ब्रिज पहाड़ के सहारे के साथ टिका हुआ था और नीचे गहरी खाई थी।

ब्रिज पर ही बीच में एक जगह छोटा सा गेट बनाया गया है जिससे कि घुसपैठ करने वालों को मॉरिंगखेंग पहुंचने से रोका जा सके।
इस गेट के बाद से ही ‘मोमोइत’ नाम के पहाड़ की तरफ के रास्ते की शुरुआत होती है। ‘मोमोइत’ एक स्त्री को दिया जाने वाला नाम है।
यहां से ट्रैक और भी कठिन हो जाता है।

कई जगह सर झुका कर, संकरी जगहों से रेंगते हुए निकलना पड़ता है। और सबसे डरावना है बिल्कुल खड़ी चढ़ाई वाला रास्ता।

टूरिज्म प्रमोटर ट्रैकिंग सोसाइटी वाह खेन ने यहां पर एक बंबू की सीढ़ी का निर्माण किया है जिससे पत्थर के शिखर तक पहुंचा जा सकता है जो कि तकरीबन 100 मीटर ऊंचा है।

ऊपर चढ़ने का रास्ता तकरीबन 150 मीटर लंबा है और मॉरिंगखेंग पत्थर के साथ सटा बंबू ब्रिज तकरीबन 70 मीटर गहरा जो अंत में आपको मॉरिंगखेंग की ऊंचाई पर पहुंचाता है।

वापसी के दौरान हम वाह रियो नदी के प्राकृतिक पानी में डुबकी लगाकर तरोताजा हुए।

हमें बहुत सी मूल्यवान जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए हम श्री ड्मुईज़िंग खोंगजिरेम, सेक्रेटरी टूरिज्म प्रमोटर्स ट्रैकिंग सोसायटी, वाह खेन के आभारी हैं।
शिलांग में ठहरने की जगह
वाह खेन में ठहरने की कोई सुविधा नहीं है।
यदि आप शिलांग में रहने के लिए एक सस्ता ठिकाना ढूंढ रहे हैं तो आप शिलांग डारमेट्री जा सकते हैं। यहां पर आपको 24 घंटे रन टेस्ट शटल सर्विस, रूम सर्विस और फ्री वाई-फाई की सुविधा मिलेगी। इसके बारे में अधिक जानकारी, रिव्यूज, उपलब्धता और मूल्य के लिए यहां पर क्लिक करें।
यदि आप यहां रहकर आराम करना चाहते हैं तो आप रि किंजई सेरेनिटी बाय द लेक में ठहर सकते हैं। 43 एकड़ की हरियाली में फैली हुई यह जगह साफ पानी वाली उमियाम लेक से तकरीबन 2.5 किलोमीटर दूर है। यहां से गुवाहाटी रेलवे स्टेशन 75 किलोमीटर की दूरी पर है और गुवाहाटी एयरपोर्ट 105 किलोमीटर दूर है। अधिक जानकारी, रिव्यूज, उपलब्धता और मूल्य के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं।
हम पायनूरस्ला के एक बजट होम स्टे में रुके थे। यह बहुत ही साधारण होमस्टे है जिसका खर्चा प्रति कमरा प्रति रात्रि के हिसाब से ₹1200 है।

मॉरिंगखेंग ट्रैक टिप्स Mawryngkhang Trek Tips
- आरामदायक जूते पहने। जरूरी नहीं है कि आप ट्रैकिंग शूज ही पहने, रनिंग या स्पोर्ट्स शूज भी बढ़िया रहेंगे।
- जल्दी सूखने वाले कपड़े पहनें क्योंकि यहां बरसाती मौसम में नमी बहुत बढ़ जाती है।
- रास्ते के लिए पानी और कुछ हल्का नाश्ता जरूर साथ रखें क्योंकि यहाँ रास्ते में खाने की कोई सुविधा नहीं है। आप अपनी पानी की बोतलें वाह रियो नदी में दोबारा भर सकते हैं।
- आकस्मिक बारिश से बचने के लिए हल्का पोंचो या विंडचीटर बैकपैक में ज़रूर रखें।
- शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों के लिए यह ट्रैक सही नहीं है।
- ट्रेक के रास्ते को साफ सुथरा रखें। यहां कई जगह बंबू से बने कूड़ेदान लगे हुए हैं।

वाह खेन गांव की दूसरी तरफ, पैदल चलने पर तकरीबन 1 घंटे की दूरी पर शिंगणगी नदी के नीचे किंरोह नामक जगह पर एक लंबा सस्पेंशन लिविंग रूट ब्रिज है।
इस ब्रिज के दो भाग हैं।
पहला मुख्य ब्रिज है और दूसरा छोटा ब्रिज है। यह जीता-जागता, जड़ों से बना हुआ पुल तकरीबन 37 मीटर लंबा है और छोटा वाला पुल तकरीबन 8 मीटर लंबा है।
वाहखेन, मेघालय के मॉरिंगखेंग ट्रैक में क्या खायें
वाह खेन और पिनूरसला, दोनों ही छोटे गांव है जहां खाने के विकल्प बहुत सीमित हैं। यदि आप शुद्ध शाकाहारी हैं तो बेहतर रहेगा कि आप अपने साथ खाखरा या थेपला जैसा कोई शाकाहारी नाश्ता रखें।

यदि आप पोर्क खाते हैं तो आप खुशकिस्मत हैं क्योंकि ये यहां पर लगभग हर खाने की जगह पर पोर्क उपलब्ध है।
एक बात याद दिला दें कि यहां पर खाने की जगहों के नाम पर सड़क के किनारे ढाबे ही हैं। यहां आपको आस-पास कोई रेस्टोरेंट नहीं मिलेगा।
उम्मीद करते हैं कि लाइट ट्रैवल एक्शन की यह विस्तृत गाइड आपको मॉरिंगखेंग ट्रैक प्लान करने में सहायक होगी।


This post was originally published in English and can be read here. This post has been translated by Amandeep Kaur.
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