लाल क़िला (रेड फोर्ट) पहली नज़र में ही मुझे प्रभावित करने में कामयाब रहा। लाल रंग की ये विशाल इमारत भारत की राजधानी दिल्ली की सबसे बड़ी ऐतिहासिक इमारत है। यहां जाने से पहले मैंने लाल क़िले के बारे में थोड़ा-बहुत पढ़ा था। क्योंकि लाल किला बहुत सारे ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी रहा है, मुझ में उत्सुकता थी इसे असलियत में करीब से देखने की ।
लाल किला क्यों प्रसिद्ध है और आपको इसे क्यों देखना चाहिए!?
लाल किला वह जगह है जहां पर आज़ादी के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराया था। तब से यह परंपरा अब भी जारी है और हर स्वतंत्रता दिवस पर यहां लाल क़िले की प्राचीर पर झंडा फहराया जाता है और यहीं से देश के प्रधानमंत्री देश के लोगों को संबोधित करते हैं।
1857 में ब्रिटिश राज के खिलाफ आज़ादी की पहली क्रांति को इसे लाल क़िले से बहादुर शाह जफर की मदद मिली।
इस लाल क़िले में ही ब्रिटिश द्वारा 1945 और 1946 में आज़ाद हिंद फौज के सदस्यों पर मुकदमे चलाए गए।
दिल्ली का सबसे बड़ा स्मारक होने के साथ-साथ लाल किला यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी है। यह मुग़ल, पर्शियन और इंडो-इस्लामिक आर्किटेक्चर का खूबसूरत नमूना है।

लाल किला क्यों बनवाया गया था
मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने जब आगरा की जगह दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया तब उसने इस खूबसूरत क़िले का निर्माण कार्य शुरू करवाया। इसका इस्तेमाल मुगल बादशाह के रहने के लिए होना था। लाल क़िले का निर्माण 1639 में शुरू हुआ और इसे पूरा करने में तकरीबन 9 साल का समय लगा। असल में लाल क़िले का नाम ‘किला ए मुबारक’ था।
उस्ताद अहमद और उस्ताद हामिद इसके मुख्य वास्तुकार (आर्किटेक्ट) थे। यह क़िला 256 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। लाल किला तकरीबन 200 सालों तक मुगल साम्राज्य का हिस्सा रहा।
लाल क़िले के अंदर क्या है


लाल क़िले के अंदर बहुत सी इमारतें हैं जैसे कि –
छत्ता चौक / Chhata Chowk (Meena Bazar Market)
छत्ता चौक का इस्तेमाल क़िले में रहने वाली महिलाओं के लिए एक बाजार के रूप में होता था। इस गली को ऊपर से छत बनाकर ढका गया था और इसके अंदर बहुत सी दुकानें थी जिनमें गहने, कीमती पत्थर, कपडे इत्यादि बेचे जाते थे। शाही परिवार की महिलाएं यहां पर ख़रीददारी करने और घूमने के लिए आती थी।
ज़ाहिर सी बात है कि अब यह जगह इतनी खूबसूरत तो नहीं होगी जिसने उस समय रही होगी पर अभी भी यहां पर दुकानें हैं जिनमें गहने, सजावट का सामान और ऐसी कई छोटी मोटी चीजें यहां आने वालों को लुभाने के लिए बेची जाती हैं।
नौबत खाना या नक्कारखाना / Naubat Khana or Nakkar Khana (the Drum House)
नौबत खाना या नक्कारखाना (ड्रम हाउस) वह जगह है जहां पर मुगलों के समय दिन में 5 बार संगीत बजा करता था। बड़े-बड़े संगीतकार शाही परिवार और मेहमानों का मनोरंजन करते थे। इस जगह को देखते हुए मैं यह सोचती हूं कि उस वक्त की शामों में रोशनी और संगीत से सराबोर ये जगह कितनी खूबसूरत लगती होगी।
यहां रहने वाले लोगों के लिए कितने खुशनुमा दिन हुआ करते होंगे तब। यहीं से बादशाह और शाही मेहमानों का स्वागत किया जाता था। नौबत खाने की ऊपरी मज़िल पर अब इंडियन वॉर मेमोरियल म्यूजियम बना हुआ है।
दीवान-ए-आम / Naubat Khana or Nakkar Khana (the Drum House)
दीवान-ए-आम वह जगह है जहां बादशाह आम लोगों से मिलते और उनके तकलीफें सुनता था। बड़ी तरतीब से बने हुए मेहराब, संगमरमर पर खूबसूरत नक्काशी और रंग-बिरंगे पत्थर, इस हॉल की खूबसूरती बढ़ाते हैं।
हॉल के बीचों-बीच एक संगमरमर का बना हुआ छतरी-नुमा चबूतरा है जहां पर बादशाह बैठा करता था। इस पर पच्चीकारी का काम किया गया है और फूल, पत्तियों और पक्षियों के चित्रों से इसे सजाया गया है।
मुमताज महल / Mumtaz Mahal
क़िले के अंदर का यह महल जनाना हिस्सा था जहां महल की औरतें रहा करतीं थीं। इसके अंदर की खूबसूरत नक्काशी और शीशों के काम से ज़ाहिर होता है कि उस समय यह कितना सुंदर रहा होगा। इस समय इसे रेड फोर्ट आरकेलॉजिकल म्यूजियम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जहां मुगल काल की वस्तुओं को रखा गया है।
रंग महल / Rang Mahal
रंग महल में बादशाह की बीवियां और अन्य औरतें रहा करती थी। किसी समय में यह महल खूबसूरती की मिसाल हुआ करता था।
खास महल / Khas Mahal
खास महल लाल क़िले का वह हिस्सा था जहां बादशाह खुद रहा करता था। इसके अंदर एक बैठक, तैयार होने के लिए अलग कमरा, और इबादत के लिए एक अलग कमरा था। खास महल की ओर जाते हुए रास्ते में एक टावर नजर आता है जिसे ‘मुथ्थमन बुर्ज’ कहा जाता था। इसी बुर्ज से बादशाह आम जनता को दर्शन दिया करता था।
दीवान-ए- खास / Diwan-e-Khas (Private Audience Hall)
बादशाह और अन्य खास लोगों और मेहमानों के बीच बैठक के लिए इस हॉल का इस्तेमाल किया जाता था। इसे देखते ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि सदियों पहले यह इमारत कितनी खूबसूरत और शानदार रही होगी। अब तो यहाँ जो है वो बस बचा-खुचा ही है।
तख्त ए तौस / The famous Peacock Throne (Takht e Taus),
विश्व प्रसिद्ध तख्त-ए -ताउस ( पीकॉक थ्रोन ) जिसमें बेशकीमती कोहिनूर हीरा जड़ा हुआ था, कभी इस जगह की शान हुआ करता था। सोने से बना और बेशकीमती हीरे- जवाहरातों और मोतियों से सजे इस तख्त की लागत ताजमहल से दोगुनी थी । तो सोचिए कितना कीमती रहा होगा वह तख्त।
पर्शिया से आए नादिर शाह ने 1739 में दिल्ली पर हमला करके उस तख्त के साथ-साथ यहां से और कई बेशकीमती चीजें लूट लीं।
मोती मस्जिद / Moti Masjid
इस मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ के बेटे औरंगज़ेब ने करवाया था । इसके अंदर सफेद संगमरमर से बना बरामदा और इबादत के लिए हाल है।
हयात बख्श बाग / Hayat Bakhsh Bagh
‘हयात बख्श’ का मतलब है जिंदगी देने वाला। 1857 के विद्रोह में इसे अंग्रेज़ों ने उजाड़ दिया था। हालांकि अब इसकी मरम्मत की गई है। इसके दो किनारों पर दो चबूतरे बने हुए हैं जिनके नाम हैं सावन और भादो। ऐसा लगता है कि उस समय इस बार में क़िले में रहने वाले लोग गर्मी से बचने के लिए यहाँ आते होंगे। बारिशों के मौसम में इसकी खूबसूरती और निखर जाती होगी।
नहर-ए-बिहिश्त / Nahr-e-Bihist (River of the Paradise)
नहर-ए-बिहिश्त का मतलब है ‘जन्नत की नदी’। इस्लाम में ऐसा माना जाता है कि जन्नत में नदियां बहती हैं। शायद इसी मान्यता के आधार पर यहां नहर-ए-बिहिश्त को बनाया गया होगा। इस नहर में यमुना नदी से पानी पहुंचाया जाता था जो उस वक़्त क़िले के पास ही बहती थी।
यह नहर लाल क़िले के कई हिस्सों और कमरों में से गुज़रते हुए क़िले की खूबसूरती को बढ़ा देती थी और कमरों को ठंडा रखने में भी मदद करती थी।

लाल क़िले का अधिकतर हिस्सा अंग्रेज़ों द्वारा 1857 के विद्रोह के दौरान नष्ट कर दिया गया था। बहादुर शाह ज़फर ने दिल्ली के लाल क़िले से विद्रोह को समर्थन दिया था।
अंग्रेज़ों से हारने के बाद लाल किला ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हो गया। यह सोच कर मुझे बहुत दुख और अफसोस हुआ कि उन्होंने इस जगह को लूटा, तबाह किया और फिर इस खूबसूरत किले का इस्तेमाल फौजी गतिविधियों के लिए किया। उन्होंने यहां बैरेक बनाए और यहां के महलों को रसोई और मेस्स में तब्दील कर दिया।
लाल किला लाल क्यों है?
लाल क़िले के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर (रेड सैंडस्टोन) का इस्तेमाल किया गया था। जिनके लाल रंग की वजह से इस क़िले का नाम लाल किला पड़ा। ऐसा माना जाता है कि लाल और सफेद शाहजहाँ के पसंदीदा रंग थे। क़िले की ऊंची चारदीवारी पूरी तरह से लाल बलुआ पत्थरों से बनी हुई है और यहां पहुंचने पर सबसे पहले उसी लाल दीवार पर नजर पड़ती है।
लाल किला देखने के लिए सबसे सही समय
नवंबर से मार्च का समय लाल किला देखने के लिए अच्छा समय है। दिसंबर और जनवरी के दौरान काफी ठंड पड़ती है। अप्रैल से अक्टूबर की गर्मी घूमने का मज़ा खराब कर सकती है। अगर खुश नुमा मौसम में यहां घूमना चाहें तो नवंबर, फरवरी और मार्च सबसे सही समय है।
लाल किला कैसे पहुंच सकते हैं
लाल किला भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है जो कि देश के बाकी सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। इंदिरा गांधी नेशनल एयरपोर्ट सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है जो कि लाल क़िले से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है।
सड़क और रेलमार्ग से दिल्ली पहुँचना भी काफी आसान है क्योंकि दिल्ली के लिए बढ़िया बस और ट्रेन सर्विस उपलब्ध है। चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन लाल क़िले का सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन है जो कि यहां से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
दिल्ली में टैक्सी, रिक्शा और बस से आसानी से लाल किला जाया जा सकता है।
लाल क़िले में कितने गेट (दरवाज़े) हैं
लाल क़िले में दो मुख्य दरवाज़े हैं- लाहौरी गेट और दिल्ली गेट। लाहौर की तरफ मुख होने की वजह से इसका नाम लाहौरी गेट पड़ा जो कि लाल क़िले की पश्चिमी दीवार पर है। इसका इस्तेमाल क़िले के मुख्य द्वार की तरह होता है। दिल्ली दरवाज़ा पुरानी दिल्ली की तरफ खुलता है और यह लाल क़िले की दक्षिणी दीवार पर बना हुआ है।
खुलने का समय
- मंगलवार से रविवार ( सोमवार को बंद )
- सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक
- प्रवेश शुल्क (एंट्री फी)
- भारतीयों के लिए ₹90 विदेशियों के लिए ₹950
- फोटोग्राफी चार्जेस- फोटोग्राफी का कोई शुल्क नहीं, वीडियो फिल्मिंग के लिए ₹25

लाल किले के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन लाल क़िले का सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन है यहां से लाल क़िले के लिए टैक्सी और ऑटोरिक्शा लिए जा सकते हैं।
सोशल मीडिया पर उस वक्त काफी हल्ला मचा जब लोगों को लगा कि लाल क़िले को ‘बेच’ दिया गया है। असल में लाल क़िले को डालमिया भारत ग्रुप को 25 करोड़ रुपयों में ‘अडॉप्ट ए हेरीटेज प्रोजेक्ट’ के तहत 5 साल के लिए सौंपा गया है।
इस प्रोजेक्ट के तहत डालमिया भारत ग्रुप को उसकी देखरेख की और संरक्षण की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है जिसके बदले में उन्हें इस स्मारक के द्वारा लोगों में अपनी पहुंच बढ़ाने का मौका मिलेगा।
दिल्ली का लाल किला आगरा के क़िले से दुगने से भी ज्यादा बड़ा है।
हां, लाल किला टूरिस्ट के लिए खुला है (सोमवार बंद)
लाल किला नेताजी सुभाष मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली में स्थित है।
दिल्ली का लाल किला और आगरे का किला जो लाल रंग का है।
हां, लाल किला व्हीलचेयर फ्रेंडली है यहां पर व्हीलचेयर का उपयोग करने वाले लोग घूम सकते हैं।
लाल क़िले के अंदर पीने के पानी की और शौचालय (टॉयलेट) की सुविधा उपलब्ध है।
एक और खास बात यह है कि लाल क़िले को नई भारतीय करंसी के ₹500 के नोट पर भी जगह दी गई है।
लाल क़िले को कई बार लूटपाट और तोड़-फोड़ का सामना करना पड़ा फिर भी सदियों बाद आज भी यह अपना सर गर्व से ऊंचा कर खड़ा है। जहां एक और इसने ताकत, सत्ता और वैभव का समय देखा है वहीं दूसरी तरफ इस ने बड़े- बड़े साम्राज्यों को खत्म होते भी देखा है। अपने सदियों के अनुभवों के साथ लाल किला आज भी कई पुरानी कहानियां सुनाता प्रतीत होता है।


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